सपनों की ओर: आराधना का सफर

आराधना को बचपन से गाने का बहुत शौक था। उसकी आवाज़ बेहद सुरीली थी। कभी-कभी वह शादी-ब्याह या छोटी-मोटी पार्टी में गाना गा लिया करती थी। आराधना की आवाज़ और गाने के शौक को देखकर रिश्तेदार उसके माता-पिता को सलाह देते थे कि वे उसे संगीत की शिक्षा दिलाएं और इसी क्षेत्र में करियर बनाने दें। लेकिन, जैसे आजकल हर माता-पिता चाहते हैं कि उनके बच्चे डॉक्टर या इंजीनियर बनें, वैसे ही आराधना के माता-पिता भी यही चाहते थे कि वह डॉक्टर बने। लेकिन आराधना का सपना गायक बनने का था।

अक्सर माता-पिता बच्चों की रुचि और क्षमता को नज़रअंदाज करके अपनी इच्छाओं का बोझ लाद देते हैं। आराधना के साथ भी ऐसा ही हुआ। पढ़ाई में वह ठीक-ठाक थी, लेकिन मेडिकल की प्रवेश परीक्षा पास नहीं कर पाई। किसी तरह उसने एम.ए. की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद उसकी शादी वरुण से हो गई। वरुण एक अच्छा इंसान था और पेशे से इंजीनियर था। वह एक बड़ी कंपनी में कार्यरत था। वरुण के पिता का देहांत हो चुका था, और उसकी माँ कविता उनके साथ रहती थीं।

शादी के बाद आराधना गृहस्थी के कामों में व्यस्त हो गई। समय का पता ही नहीं चला। फिर आरव का जन्म हुआ, और देखते ही देखते वह दो साल का हो गया। आरव अपनी दादी से काफी घुल-मिल गया था।

वरुण के ऑफिस में नववर्ष के अवसर पर एक कार्यक्रम, “गीतों से भरी शाम… नववर्ष के नाम” आयोजित किया जा रहा था। इसमें ऑफिस के सभी कर्मचारी और उनके परिवार वाले हिस्सा ले सकते थे। उम्र की भी कोई सीमा नहीं थी। वरुण, आराधना के गाने के शौक से परिचित था। शादी के दूसरे दिन ही रिश्तेदारों ने आराधना से गाने की फरमाइश की थी, और उसने बेहद खूबसूरत गाना गाया था। वरुण ने बिना बताए आराधना का नाम कार्यक्रम में दर्ज करवा दिया।

जब वरुण ने घर आकर यह बात बताई, तो पहले तो आराधना खुश हुई, लेकिन फिर उसे डर लगा कि इतने समय बाद सबके सामने गाना कैसे गा पाएगी। वरुण ने उसका हौसला बढ़ाते हुए कहा, “देखो, वहाँ कोई प्रोफेशनल सिंगर नहीं आ रहे हैं। सब तुम्हारी तरह शौक से गाने वाले हैं। वही गाना गाना जो तुमने शादी के बाद गाया था। अभी दो दिन हैं, तुम रियाज कर लो।” पति का उत्साह देखकर आराधना भी उत्साहित हो गई और रियाज में जुट गई।

नववर्ष का दिन आ गया। आराधना और वरुण ने सुबह कविता के पैर छुए और आशीर्वाद लिया। कार्यक्रम शाम पाँच बजे शुरू होना था, इसलिए आराधना ने जल्दी-जल्दी घर के काम निपटाए। कविता ने भी उसकी मदद की।

शाम चार बजे वरुण ने गाड़ी निकाली और आराधना, कविता और आरव को लेकर कार्यक्रम स्थल की ओर निकल पड़ा। रास्ते में आराधना थोड़ी नर्वस हो रही थी। वरुण ने उसे पानी पिलाया और उसका उत्साह बढ़ाया। वे समय पर सेंट्रल हॉल पहुँच गए।

कार्यक्रम निर्धारित समय पर शुरू हुआ। कुछ देर बाद आराधना का नाम पुकारा गया। स्टेज पर पहुँचकर उसने माइक संभाला और गाना शुरू किया। पहली बार आराधना ने ऑर्केस्ट्रा के साथ गाया। उसकी आवाज़ सुनकर सभी मंत्रमुग्ध हो गए। गाना खत्म होते ही तालियों की गड़गड़ाहट से हॉल गूंज उठा। आराधना को “सिंगर ऑफ द ईवनिंग” के खिताब से नवाजा गया और पुरस्कार दिया गया।

कार्यक्रम के बाद वरुण के बॉस और सहकर्मियों ने आराधना की तारीफ की। मिसेज़ गुप्ता ने वरुण से कहा, “कहाँ छुपा रखा था इस टैलेंट को? आराधना तो प्रोफेशनल सिंगर की तरह गा रही थी। इसे किसी संगीत अकादमी में भेजना चाहिए।”

कविता ने मिसेज़ गुप्ता की बातें सुनीं और खुद को बच्चों पर बोझ समझने लगीं। उस रात कविता ने निर्णय लिया कि वह आराधना के सपने को पूरा करेंगी। अगली सुबह उन्होंने अखबार में एक विज्ञापन देखा, जिसमें शहर के सर्वश्रेष्ठ गायक/गायिका की प्रतियोगिता का उल्लेख था।

कविता ने आराधना को विज्ञापन दिखाया और उसे भाग लेने के लिए प्रेरित किया। शुरू में आराधना झिझकी, लेकिन कविता ने दीपा से संगीत की कोचिंग दिलाने का आश्वासन दिया। आराधना ने सहमति दे दी और दीपा के पास रियाज के लिए जाने लगी।

आराधना की मेहनत रंग लाई, और उसका चयन प्रतियोगिता में हो गया। प्रतियोगिता के दिन आराधना ने पूरे आत्मविश्वास के साथ मंच पर गाना गाया। तालियों की गूंज से साफ था कि उसका गाना बेहद पसंद किया गया।

आयोजकों ने उसे सर्वश्रेष्ठ सिंगर का खिताब दिया। मंच पर आराधना ने अपनी सफलता का श्रेय कविता को दिया। कविता अपने वादे को पूरा कर गर्व महसूस कर रही थीं।

सार:
ससुराल वालों के सहयोग और प्रोत्साहन से आराधना ने अपने सपने को साकार किया। अगर हर परिवार अपने सदस्यों की इच्छाओं और हुनर को महत्व दे, तो परिवार स्वर्ग जैसा हो सकता है।

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