सिलाई और प्यार: एक अनकही कहानी

सूरज की पहली किरणों के साथ ही छोटा सा गाँव रामपुर जाग उठता था। यहाँ की मिट्टी में एक अलग ही सुगंध थी, जो हर सुबह लोगों को नए सपने देखने की प्रेरणा देती थी। इसी गाँव में रहता था रमेश, एक मेहनती दर्जी।

रमेश की दुकान गाँव के मुख्य चौराहे पर थी। वह अपनी कला में माहिर था और उसके हाथों से बने कपड़े पूरे गाँव में मशहूर थे। लेकिन रमेश के दिल में एक राज छिपा था, जो उसे हर पल अशांत करता था।

रमेश के घर के ठीक सामने रहती थी सीता। वह गाँव की सबसे सुंदर लड़की थी। उसकी मुस्कान ऐसी थी कि जो भी देखता, मोहित हो जाता। रमेश भी उसकी इस मुस्कान का दीवाना था।

हर सुबह, जब सीता अपने आँगन में तुलसी के पौधे को पानी देती, रमेश चुपके से उसे देखता। उसका दिल धड़कने लगता, लेकिन वह कुछ कह नहीं पाता था।

रमेश के मन में सीता के लिए प्यार था, लेकिन वह कभी अपने दिल की बात कह नहीं पाया। वह सोचता, “मैं एक साधारण दर्जी हूँ, और सीता इतनी खूबसूरत है। वह मुझे कैसे पसंद करेगी?”

हर दिन, जब सीता उसकी दुकान के सामने से गुजरती, रमेश का दिल तेजी से धड़कने लगता। वह चाहता था कि एक बार उससे बात कर ले, लेकिन हर बार हिम्मत नहीं जुटा पाता था।

गाँव में दिवाली का त्योहार आने वाला था। हर कोई नए कपड़े सिलवाने के लिए रमेश की दुकान पर आ रहा था। रमेश दिन-रात मेहनत कर रहा था।

एक दिन सीता भी अपनी माँ के साथ रमेश की दुकान पर आई। उसने कहा, “रमेश भैया, मुझे एक सुंदर सा सूट सिल दीजिए।” रमेश के हाथ काँपने लगे, लेकिन उसने अपने आप को संभाला और मुस्कुराकर कहा, “जी हाँ, बिल्कुल।”

रमेश ने सीता के सूट पर विशेष ध्यान दिया। उसने रात-रात भर जागकर उस सूट पर काम किया। उसने सोचा, “शायद इस सूट के जरिए मैं अपने प्यार का इजहार कर सकूँ।”

उसने सूट पर छोटे-छोटे फूल काढ़े, जो सीता के चेहरे की तरह ही सुंदर थे। हर टाँके में उसने अपना प्यार भर दिया।

दिवाली की रात आ गई। पूरा गाँव रोशनी से जगमगा रहा था। रमेश अपनी दुकान पर बैठा था, सीता का इंतजार कर रहा था।

जब सीता आई, तो रमेश ने उसे सूट दिया। सीता ने सूट देखा और खुशी से चिल्ला उठी, “वाह रमेश भैया, यह तो बहुत सुंदर है!”

रमेश की आँखों में चमक आ गई। उसने सोचा, “काश मैं कह पाता कि यह सूट मेरे प्यार का प्रतीक है।”

सीता ने रमेश को धन्यवाद दिया और जाने लगी। तभी रमेश ने हिम्मत जुटाई और कहा, “सीता, एक मिनट रुको।”

उसने अपनी दराज से एक छोटा सा डिब्बा निकाला। उसमें एक सुंदर सा कंगन था, जो उसने खुद बनाया था। उसने कहा, “यह तुम्हारे लिए एक छोटा सा उपहार है।”

सीता ने कंगन देखा और मुस्कुराई। उसने कहा, “रमेश भैया, यह बहुत सुंदर है। आपने इतनी मेहनत क्यों की?”

रमेश ने गहरी साँस ली और कहा, “सीता, मैं तुमसे कुछ कहना चाहता हूँ। मैं… मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ।”

सीता चौंक गई। उसके चेहरे पर हैरानी और खुशी के भाव थे। वह कुछ देर चुप रही, फिर धीरे से बोली, “रमेश भैया, मुझे पता था। मैं भी आपको पसंद करती हूँ।”

रमेश की आँखों में आँसू आ गए। उसने कहा, “सीता, मैं एक साधारण दर्जी हूँ। क्या तुम मुझे अपना जीवनसाथी बनाना चाहोगी?”

सीता ने मुस्कुराकर कहा, “हाँ रमेश, मैं तुम्हारे साथ अपना जीवन बिताना चाहती हूँ।”

उस दिवाली की रात, रमेश और सीता ने अपने प्यार का इजहार किया। गाँव वालों ने भी उनके प्यार को स्वीकार किया।

रमेश की दुकान अब सिर्फ कपड़े सिलने की जगह नहीं रही, बल्कि प्यार की कहानी का गवाह बन गई। हर टाँके में अब एक नई उम्मीद थी, हर कपड़े में एक नया सपना।

इस तरह, एक साधारण दर्जी की अनकही प्रेम कहानी, जो उसके दिल में छिपी थी, आखिरकार सबके सामने आ गई। रमेश और सीता की यह कहानी गाँव में लंबे समय तक याद की जाती रही, जो सिखाती है कि प्यार में डर की कोई जगह नहीं होती।

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