खुशियों की तलाश (The Search for Happiness)
गीता अपने आँसुओं को रोक नहीं पा रही थी। “माँ, आप भी क्या मुझे ही गलत समझ रही हैं?” उसने अपनी सास, कमला जी से सवाल किया।
“नहीं बेटा,” कमला जी ने जवाब दिया, “मुझे अपनी बेटी पर गुस्सा आ रहा है। पर अच्छा हुआ वो चली गई। उम्मीद है अगली बार जब वो आएगी तो ऐसा व्यवहार नहीं करेगी।” कहते हुए कमला जी अपने कमरे में चली गईं।
गीता समझ सकती थी कि उसकी सास आज परेशान हैं। उसे आज एहसास हुआ कि उसकी सास कितनी समझदार हैं। काश हर किसी को ऐसी सास मिले!
कमरे में, कमला जी अपने पति की तस्वीर से बातें कर रही थीं। “आप कहते थे ना, बेटी को सिर पर मत चढ़ाओ… देखो, शादी के बाद भी उसकी मनमानी नहीं गई।” कमला जी की आँखों से आँसू बहने लगे।
प्रिया और प्रवीण दो बच्चों के माता-पिता थे, पर प्रवीण हमेशा अपनी बेटी प्रिया का पक्ष लेते थे। प्रिया शादी के बाद भी जब-तब घर आती और मनमानी करती। प्रवीण कभी उसे टोकते नहीं थे। पाँच साल पहले प्रिया के पिता के गुजर जाने के बाद भी, कमला जी और प्रवीण, प्रिया का ख्याल रखते थे।
प्रवीण की शादी को तीन साल हुए थे। प्रिया को लगता था कि अब उसकी माँ, बहू गीता को ज़्यादा महत्व देती हैं। इस बार जब प्रिया आई, तो कुछ दिनों बाद ही गीता का जन्मदिन था। कमला जी ने प्रवीण से कहा कि गीता के लिए हीरे के टॉप्स लाने हैं।
जन्मदिन पर, कमला जी ने गीता को टॉप्स दिए। गीता उन्हें पहनकर बहुत खुश हुई। तभी प्रिया ने टॉप्स देखे और बोल उठी, “वाह भाभी, कितने सुंदर टॉप्स हैं! मुझे भी ऐसे ही चाहिए।”
कमला जी ने समझाया कि यह गीता के जन्मदिन का तोहफ़ा है, पर प्रिया नहीं मानी। उसने गुस्से में कहा, “पहली बार देख रही हूँ, माँ बेटी से ज़्यादा बहू का ख्याल रख रही है।”
गीता ने प्रिया को टॉप्स देने चाहे, पर प्रिया गुस्से में घर से चली गई।
थोड़ी देर बाद, प्रिया वापस आई और रोते हुए कमला जी से लिपट गई। उसने बताया कि उसने प्रवीण को सुनार से उधार मांगते हुए देख लिया था। प्रिया को एहसास हुआ कि उसकी ज़िद की वजह से उसके भाई को कितनी परेशानी हो रही है।
प्रिया ने अपनी गलती मान ली और गीता से माफ़ी मांगी। अब जब भी प्रिया घर आती है, वो पहले जैसी मनमानी नहीं करती। गीता को अपनी ननद पर गर्व था और अपनी सास पर भी, जिन्होंने बेटी और बहू में कभी भेद नहीं किया।