Love Beyond Time कालातीत प्रेम
राजेश अपने घर ‘प्रीति निवास’ की दूसरी मंजिल के एक छोटे से कोने में बैठा था। यह कमरा, जो कभी एक भंडार गृह था, अब उसका निवास बन गया था। यहाँ प्रीति कभी अचार के मर्तबान, बांस की टोकरियाँ, और पुरानी चटाइयाँ रखा करती थी।
राजेश ने याद किया वह समय जब उन्होंने बड़े सपने देखकर इस घर का निर्माण किया था। तब उनकी दो बेटियाँ छोटी थीं, और उनकी माँ भी जीवित थीं। प्रीति और राजेश दोनों ने मिलकर बैंक से ऋण लिया था इस घर के लिए। प्रीति अपने कार्यालय से लौटते ही रसोई में व्यस्त हो जाती, माँ की डाँट-फटकार सुनती, और फिर देर रात राजेश की भी कुछ कड़वी बातें सुनकर चुपचाप सो जाती।
प्रीति का दिन बहुत जल्दी शुरू होता। वह सुबह चार बजे उठकर सबके लिए खाना, नाश्ता, और चाय तैयार करती। उस समय घर में कोई नौकर नहीं था, क्योंकि वे ऋण चुकाने में व्यस्त थे। राजेश प्रीति को उसके कार्यालय छोड़ देता, जो उसके स्कूल के रास्ते में पड़ता था।
घर का निर्माण, नौकरी का तनाव, और चार महीने का गर्भ – प्रीति यह सब एक साथ संभाल रही थी। उसकी सास को कोई चिंता नहीं थी, क्योंकि प्रीति पहले ही दो जुड़वा बेटियों को जन्म दे चुकी थी। और राजेश? वह तो बस अपनी माँ का आज्ञाकारी पुत्र था।
अंततः, घर का निर्माण पूरा हुआ और एक बेटे का जन्म हुआ। राजेश ने बड़े गर्व से घर का नाम रखा – ‘प्रीति निवास’।
समय बीतता गया। बेटियाँ सरकारी स्कूल में भर्ती हो गईं, और ऋण का एक तिहाई भाग चुका दिया गया। बेटा अमन भी बड़ा हो रहा था, जिसे शहर के सबसे अच्छे स्कूल में भर्ती कराया गया। राजेश और उसकी माँ घर खर्च को लेकर बहस करते रहते, जबकि प्रीति ने पड़ोस के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया।
वर्षों बीत गए। बेटियाँ पढ़-लिखकर अपने घर चली गईं। फिर प्रीति ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया, और कुछ समय बाद राजेश की माँ भी चल बसीं। अमन ने किसी तरह बारहवीं पास की और फिर ग्रेजुएशन में छह साल लगा दिए। राजेश ने अपने बॉस से अनुरोध करके उसे एक क्लर्क की नौकरी दिलवाई, और जल्द ही अमन ने शादी भी कर ली।
अब राजेश को लगता है कि वह इस बड़े घर में एक बोझ बन गया है। उसे इस छोटी सी कोठरी में रख दिया गया है, जहाँ से एक छोटी खिड़की के माध्यम से वह बाहर की दुनिया की कल्पना करता है।
बेटियाँ कभी-कभार आती हैं और उसे अपने साथ ले जाने की बात करती हैं, लेकिन राजेश को लगता है कि जिनके साथ उसने कभी ठीक से बात नहीं की, उनके सामने अब कैसे जाए। वह बस यही चाहता है कि उसकी बेटियाँ अपने घरों में खुश रहें।
बचपन में राजेश अपने पिता को आसमान के तारों में खोजता था, और अब वह खुद खिड़की के सलाखों को पकड़कर घंटों तारों को देखता रहता है। उसे लगता है कि शायद किसी तारे के रूप में प्रीति उसे दिख जाए और उसे इस संसार से परे ले जाए – काल के पार, जहाँ वे फिर से एक हो सकें।